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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान कैसे मिलें

भगवान कैसे मिलें

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :126
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1061
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है भक्त को भगवान कैसे मिलें....

भगवान् शीघ्रातिशीघ्र कैसे मिलें?

भगवान् शीघ्रातिशीघ्र कैसे मिलें? इसके लिये दो बातें हैं-

(१) आतुर दु:खीकी सेवा।

(२) धर्मकी रक्षाके लिये प्राण दे देना। इसकी आपत्तिकालमें परीक्षा होती है। भगवान् कहते हैं-'स्वधमें निधनं श्रेय:।'

गुरुगोविन्द सिंहके लड़के धर्मके लिये मर गये, उनकी कीर्ति तो संसारमें है ही, गति भी उनकी उत्तम-से-उत्तम होनी चाहिये।

धर्मके ऊपर प्राण देना-वहाँ उस स्थानमें अपने प्राणोंकी आहुति दे देना मुक्तिका मार्ग है। ऐसी वीरता पंजाबमें है। नेपाल आदि देशमें है। जिस स्थलमें घोर अत्याचार होता है, वहाँ मनुष्य प्राण त्यागनेको तैयार हो जाय तो भगवान् उसको दर्शन देते हैं।

चीरहरणके समय द्रौपदीकी प्रार्थनाका उदाहरण-भगवान् सब जगह सदा ही वर्तमान हैं, जहाँ द्रौपदीकी तरह आतुरता है। वहाँ प्रकट होते हैं। रुक्मिणीकी आतुरतामें भगवान्ने दर्शन दिया।

किसीपर विपत्ति आती है तो भगवान् उसकी रक्षा करते हैं। कहीं अप्रकटमें कहीं प्रकटमें रक्षा करते हैं।

बहुत-से भाई दूसरोंको बचानेके लिये अपने प्राणोंको अर्पण कर देते हैं। कहीं तो ऐसा होता है कि धर्मकी रक्षा हो जाती है, कहीं मर जाता है तो मुक्ति मिल जाती है।

धर्मकी रक्षाके लिये, देशकी रक्षाके लिये प्राण त्यागनेपर जगत्में उसकी वीरता फैल जाती है एवं मरनेपर मुक्ति मिलती ही है।

कानपुरके गणेशशंकर विद्यार्थीका उदाहरण-वे धर्मके लिये मरे। वे चाहते थे, संसारमें शान्ति फैले, वे धर्मका पालन करते-करते मरे। गुरुगोविन्द सिंहके लड़कोंकी भी यही बात है। प्रत्यक्षमें यह कोई नहीं बता सकता कि उन्हें भगवान्के दर्शन हुए, लेकिन शास्त्रके आधारपर उत्तम गति होनी चाहिये।

सबसे बढ़कर यही बात है, जहाँ-कहीं पापका कार्य देखें, अधर्म देखें, वहाँ अपने-आपको बलिदान कर देवें। चाहे संसारमें धर्मका प्रचार करनेके लिये ही अपने-आपको बलिदान कर दें।

धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी।

धीरजकी परीक्षा- कोई आपत्ति आये उसे आनन्दके साथ सह ले, उस समय उसके धीरजकी परीक्षा होती है। आपत्तिकालमें वीरता ही काम आती है। भय न करके धीरता और वीरता काममें लानी चाहिये।

वही शूरवीर है जो दाँवसे रोक दे, घूमता रहे लेकिन पीठ न दिखाये। हरेकको यह खयाल करना चाहिये कि कोई भी आपत्ति आये, उसे आनन्दके साथ सहे।

जिस जगह किसीका धर्म जाता हो, किसी गायकी हत्या हो या किसी प्रकारका पाप ऊपर आवे, वहाँ अपने प्राणोंका त्याग करना ही एकमात्र उपाय है।

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    अनुक्रम

  1. भजन-ध्यान ही सार है
  2. श्रद्धाका महत्त्व
  3. भगवत्प्रेम की विशेषता
  4. अन्तकालकी स्मृति तथा भगवत्प्रेमका महत्त्व
  5. भगवान् शीघ्रातिशीघ्र कैसे मिलें?
  6. अनन्यभक्ति
  7. मेरा सिद्धान्त तथा व्यवहार
  8. निष्कामप्रेमसे भगवान् शीघ्र मिलते हैं
  9. भक्तिकी आवश्यकता
  10. हर समय आनन्द में मुग्ध रहें
  11. महात्माकी पहचान
  12. भगवान्की भक्ति करें
  13. भगवान् कैसे पकड़े जायँ?
  14. केवल भगवान्की आज्ञाका पालन या स्मरणसे कल्याण
  15. सर्वत्र आनन्दका अनुभव करें
  16. भगवान् वशमें कैसे हों?
  17. दयाका रहस्य समझने मात्र से मुक्ति
  18. मन परमात्माका चिन्तन करता रहे
  19. संन्यासीका जीवन
  20. अपने पिताजीकी बातें
  21. उद्धारका सरल उपाय-शरणागति
  22. अमृत-कण
  23. महापुरुषों की महिमा तथा वैराग्य का महत्त्व
  24. प्रारब्ध भोगनेसे ही नष्ट होता है
  25. जैसी भावना, तैसा फल
  26. भवरोग की औषधि भगवद्भजन

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